Sunday, April 21, 2013

हार कर भी मुस्कराता रहा इक तुझ पे अकीदा रखकर............'आबिद'


किस गुनाह की सजा में मुब्तिला हूँ मैं ...
तेरे इंम्तिहान देख, बहुत अदना हूँ मैं ...


बारहां कोशिशे मेरी नाकाम हुए जाती हैं
तलब में आंसू लिए तकती निगाह हूँ मैं ...


इक हसरत भरी नज़र हैं मेरे अपनों की मुझसे
मैं क्या जवाब दूँ उन्हें, के क्या हूँ मैं ...


क्या ख्वाबो की कीमत तिल-तिल कर मरना हैं
जंग हार गया हूँ तो फिर क्यूँ जिन्दा हूँ मैं ...


माना मेरी दुआओ में असर नहीं फिर भी लेकिन
किसी का आसरा हूँ तो किसी का हौसला हूँ मैं ...


हार कर भी मुस्कराता रहा इक तुझ पे अकीदा रखकर
ए अल्लाह, कैसा भी सही आखिर तेरा बन्दा हूँ मैं

----'आबिद'

2 comments:

  1. bahut khoob,माना मेरी दुआओ में असर नहीं फिर भी लेकिन
    किसी का आसरा हूँ तो किसी का हौसला हूँ मैं ...


    हार कर भी मुस्कराता रहा इक तुझ पे अकीदा रखकर
    ए अल्लाह, कैसा भी सही आखिर तेरा बन्दा हूँ मैं

    ReplyDelete