Sunday, April 28, 2013

तेरा क्या जाता.............हरि पौडेल




चन्द लम्हा और गुजर जाता, तो तेरा क्या जाता
ये रात गर तेरी खुशबू ले जाती, तो तेरा क्या जाता

प्यासी नजरों से कोइ देखे, तो शिकायत ही क्यों ?
महफिल मे गर रौनक आ जाती, तो तेरा क्या जाता

तेरी पायल की झंकार से जाग पडते ये मरते मजनू
बंजर पड़े बाग मे गर बहार आती, तो तेरा क्या जाता

लड़खडाते हुए गुज़र रहे है कई प्यासे तेरी गलियों मे 
ज़ाम टकराए गर सम्हलने के लिए, तो तेरा क्या जाता

शोहरत सुन के ही आए है ये दीवाने इस महफिल मे
ज़ाकत से तेरी गर पाते है सुकूँ, तो तेरा क्या जाता

--हरि पौडेल
सम्पादनः यशोदा दिग्विजय अग्रवाल
मूल रचना कृपया यहाँ पढ़े

6 comments:

  1. इस खुबसुरत अभिव्यक्ति को चुरा अपना बना लूँ तेरा क्या जाता
    हार्दिक शुभकामनायें

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  2. प्यासी नजरों से कोइ देखे, तो शिकायत ही क्यों ?
    महफिल मे गर रौनक आ जाती, तो तेरा क्या जाता

    तेरी पायल की झंकार से जाग पडते ये मरते मजनू
    बंजर पड़े बाग मे गर बहार आती, तो तेरा क्या जाता

    बहुत खूब !-एक नजर इधर दाल देते तो तेरा क्या जाता!
    डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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  3. बहुत ही खुबसूरत रचना.....

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