Monday, March 5, 2018

कैसा ढाया क़हर है.....आशुतोष शर्मा

अपनों ने कैसा ढाया क़हर है
रिश्तों में घोल डाला ज़हर है।

बन गए मज़हब के हाकिम सभी
जाने कैसी चल पड़ी लहर है।

झूठ का है दौर खुल कर बोलिए
सच्चाई कि अब नहीं ख़ैर है।

कहाँ तक चलोगे लेके उसूलों को
देखिए तो हर तरफ़ अँधेर है।

ख़ूब करो लूट, क़त्ल और ग़ारत
काफ़ी बड़ा अपना भी शहर है।

चीखें पुकारें बेबसी की गूँज रही
नए वक़्त की यह नई बहर है।
-आशुतोष शर्मा

5 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (06-03-2017) को "5 मार्च-मेरे पौत्र का जन्मदिवस" (चर्चा अंक-2901) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  2. जय मां हाटेशवरी...
    अनेक रचनाएं पढ़ी...
    पर आप की रचना पसंद आयी...
    हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
    इस लिये आप की रचना...
    दिनांक 06/03/2018 को
    पांच लिंकों का आनंद
    पर लिंक की गयी है...
    इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।

    ReplyDelete
  3. बहुत खूब ...
    ग़ज़ल का हर शेर काबिले तारीफ़ ...

    ReplyDelete
  4. वाह!!बहुत सुंदर

    ReplyDelete