Monday, March 19, 2018

उड़ान....उर्मिल

मोह माया  का  बना हिंडोला ,
अहंकार की  चमक रही डोरी !
लालसा  का  बिछा  है पाटा,
मन  का परिंदा पर फैलाया,
चाह  जगी अम्बर छूने की...!!

ऊँची ऊंची पींगे भरता ,
स्वप्नजाल में उलझा रहता!
हिचकोले खाता ऊपर नीचे ,
तृष्णा की भूख मिटा नही पाता!
समय चक्र चलता रहता ,
इन्सान इसी में भुला रहता!

इस भूलभुलैया की नगरी में,
बीत गई जिन्दगानी सारी!
जब अन्त समय आया,
आगाध तिमिर ने घेरा!
विस्मृत हुवा हिंडोला सुख,
प्रभु को देने लगा दुहाई!!

#उर्मिल

3 comments:

  1. वाह!!! बहुत सुंदर......अच्छी रचना

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (20-03-2017) को "ख़ार से दामन बचाना चाहिए" (चर्चा अंक-2915) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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