Monday, March 26, 2018

अहसासों की नदी......सुदर्शन रत्नाकर


एक नदी बाहर बहती है रिश्तों की
एक नदी भीतर बहती है अहसासों की।

नदी के भीतर कुछ द्वीप हैं 
बन्धनों के नदी में प्राण हैं साँसों के।
नदी उफनती भी है,
नदी सूखती भी है।

कुछ बन्धन हैँ काँटों के
कुछ रिश्ते हैं फूलों के
मैंने जीवन में जो बोया है
उसको ही काटा है;
दु:ख झेला और
कतरा-कतरा सुख बाँटा है।

अपनों का दिया विष पी-पीकर
अमृत के लिए मन तरसा है;
कितनी नदियाँ झेली हैं बाहर
कितनी नदियाँ झेली हैं भीतर
एकान्त कोने में 
मन हरदम बरसा है ।
-सुदर्शन रत्नाकर

3 comments:

  1. वाह !!! बहुत शानदार रचना

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (27-03-2017) को "सरस सुमन भी सूख चले" (चर्चा अंक-2922) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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