लो, सावन बहका है
बूँदों पर है खुमार, मनुवा भी बहका है।
बागों में मेले हैं
फूलों के ठेले हैं,
झूलों के मौसम में
साथी अलबेले हैं।
कलियों पर है उभार, भँवरा भी चहका है।
ऋतुएँ जो झाँक रहीं
मौसम को आँक रहीं,
धरती की चूनर पर
गोटे को टांक रहीं।
उपवन पर हो सवार, अंबुआ भी लहका है।
कोयलिया टेर रही
बदली को हेर रही,
विरहन की आँखों को
आशाएँ घेर रही।
यौवन पर है निखार, तन-मन भी दहका है।
रजनी मोरवाल
rajani_morwal@yahoo.com
सुन्दर ।
ReplyDeleteवाह ... बहुत सुन्दर रचना है ...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको . कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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