महाकवि हरिवंश राय बच्चन की कलम ने रचा एक
काव्य ग्रन्थ नाम दिया "मधुशाला"
पूरा पढ़ी आज..
या यों कहिए आज अमृत पान किया मैंने
प्रस्तुत कर रही हूँ इस ग्रन्थ का परिशिष्ठ
स्वयं नहीं पीता, औरों को, किन्तु पिला देता हाला,
स्वयं नहीं छूता, औरों को, पर पकड़ा देता प्याला,
पर उपदेश कुशल बहुतेरों से मैंने यह सीखा है,
स्वयं नहीं जाता, औरों को पहुंचा देता मधुशाला।
मैं कायस्थ कुलोदभव मेरे पुरखों ने इतना ढ़ाला,
मेरे तन के लोहू में है पचहत्तर प्रतिशत हाला,
पुश्तैनी अधिकार मुझे है मदिरालय के आँगन पर,
मेरे दादों परदादों के हाथ बिकी थी मधुशाला।
बहुतों के सिर चार दिनों तक चढ़कर उतर गई हाला,
बहुतों के हाथों में दो दिन छलक झलक रीता प्याला,
पर बढ़ती तासीर सुरा की साथ समय के, इससे ही
और पुरानी होकर मेरी और नशीली मधुशाला।
पित्र पक्ष में पुत्र उठाना अर्ध्य न कर में, पर प्याला
बैठ कहीं पर जाना, गंगा सागर में भरकर हाला
किसी जगह की मिटटी भीगे, तृप्ति मुझे मिल जाएगी
तर्पण अर्पण करना मुझको, पढ़ पढ़ कर के मधुशाला।
एक सौ पैंतीस मनकों की ये माला
यहां पठन-पाठन के लिए उपलब्ध है
सादर
यहां पठन-पाठन के लिए उपलब्ध है
सादर
https://www.youtube.com/watch?v=CBNhFShxU-4
ReplyDeleteसुनिये भी ।
शुभ संध्या भैय्या जी
Deleteआभार वीडियो के लिए
इसे भी जोड़ दी हूँ
सादर
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " रामायण की दो कथाएं.. “ , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteआभार देव जी
Deleteसादर
वाह, बहुत बढ़िया
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