दर्ज़ा, वो मकाम ‘हुनर-ओ-फन’ चाहिए
हमदर्दी नहीं ... तुम्हारी जलन चाहिए
दोस्तों से .... जी भर गया .. अब बस
हमें कायदे का .... एक दुश्मन चाहिए
साथ इज्ज़त के ... जिंदा रहने के लिए
हौसला जिगर में, सर पे कफन चाहिए
सूझ रहा है कोई खेल .... नया शायद
दिल हमारा उन्हें ... दफ’अतन चाहिए
जो कहते है खुद को आइना समाज का
दिखाने को उन्हें .... एक दरपन चाहिए
बोझ दिल का हल्का करने को ‘अमित’
शायरी में ..…… और .. वज़न चाहिए
-अमित हर्ष
बहुत खूब
ReplyDeleteवाह !
ReplyDeleteसाथ इज्ज़त के ... जिंदा रहने के लिए
ReplyDeleteहौसला जिगर में, सर पे कफन चाहिए
..बहुत खूब
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (24-07-2016) को "मौन हो जाता है अत्यंत आवश्यक" (चर्चा अंक-2413) पर भी होगी।
ReplyDelete--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Khubsurat gazal 👍
ReplyDeleteKhubsurat gazal 👍
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