मेरी धरोहर..चुनिन्दा रचनाओं का संग्रह
Friday, January 15, 2016
बेटियाँ.....जयप्रकाश मानस
आँगन में
चहकती हुईं गौरेया
देखते-ही-देखते पहाड़ हो गई
आख़िर एक दिन उन्हें
घोंसले से दूर कहीं खदेड़ दिया गया
लेकिन गईं कहाँ वे ढीठ!
अब वे नदी की तरह उतरती रहती हैं
उदास आँखों में
पारी-पारी से
-जयप्रकाश मानस
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