हाँ जी हम बेशक ऐसा कर सकते थे।
रोज़ नया भगवान खड़ा कर सकते थे॥
वो तो मिट्टी ने ही रोक लिया वरना।
हम भी चादर को मैला कर सकते थे॥
हवा ने अपने होश नहीं खोये वरना।
तिनके! बहुतों को अन्धा कर सकते थे॥
जिस के मुसकाने से मुसकाते हैं हम।
उस को हम कैसे रुसवा कर सकते थे॥
हम ही से परहेज़ न हो पाये वरना।
कई बैद हम को अच्छा कर सकते थे॥
-नवीन सी. चतुर्वेदी
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