समझ नहीं पाता है इंसान।
कभी - कभी.....
जिंदगी दिखाती है रास्ते बहुत॥
खड़ी करती है सवाल बहुत।
किस राह जाऊँ किस राह नही जाऊँ॥
कर देती है बैचेन बहुत।
क्या करूँ क्या नहीं करूँ॥
समझ नही पाता है इंसान।
जिंदगी दुविधा में फँस जाती है॥
फ़ैसला करना मुश्किल हो जाता है कि...
किस दिशा जाऊँ किस दिशा नही जाऊँ॥
उस समय सिर्फ याद आती है
उस रब की...कि वो ही कोई राह दिखाये
जिस पर हम खुशी-खुशी जाये॥
©विमल गांधी
“विमल गांधी जी” की कवितओं का
हर एक शब्द में अलौकिक सार भरा हैं।
जो हर एक शब्द पर विचार सागर-मंथन कर हृदयसात करने योग्य हैं।
कविताऐं छोटी और सरल शब्दों में होते हुए भी हृदयसात करने योग्य हैं।
जो भी इंसान इन कविताओं को गहराई (हर शब्दों का सार) से समझकर आत्मसात करें, उसका जीवन धन्य हो जायें।
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ReplyDeleteसुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार! मकर संक्रान्ति पर्व की शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...