जवान होने की सीमा के आसपास मिली
किशोर वय मे भी,सोलह की उम्र खास मिली..
खुशी के बाद नज़र आई सारी दुनिया खुश
उदास होते ही दुनिया बहुत उदास मिली
हटा कर राख अगन को जगाना पड़ता है
हताश लोगों के मन में भी कोई आस मिली
वो जिसने किया बाध्य चाकरी के लिए
हरिक मनुष्य की काया में भूख प्यास मिली
विकल समुद्र से मिलने चल पड़ी नदियां
समुद्र होने की चाहत नदी के पास मिली
उन्हीं के स्वप्न का सूरज कभी नहीं डूबा
वो जिनके सपने के अन्दर बहुत उजास मिली
-जहीर कुरैशी
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (16-01-2016) को "अब तो फेसबुक छोड़ ही दीजिये" (चर्चा अंक-2223) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
नववर्ष 2016 की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति।
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