Thursday, January 7, 2016

कैसे गुज़ार देते हैँ कोठों पे लोग उम्र...शिवशंकर यादव

इंसानियत की मेरी बीमारी नहीं जाती।
सिर से मेरी अना ये उतारी नहीं जाती।

है वास्ता हमारा भी रघुकुल से दोस्तो,
खाली कभी ज़ुबान हमारी नहीं जाती।

मजबूरियाँ ले जाती हैँ बाज़ार में उसको,
इज़्ज़त गँवाने ख़ुद ही बेचारी नहीं जाती।

राहोँ मे लड़कियोँ को सदा घूरने वाली,
आदत हरामज़ादे तुम्हारी नहीं जाती।

शादी किये बिना ही है होती सुहागरात,
लड़की कोई ससुराल कुँवारी नहीं जाती।

कैसे गुज़ार देते हैँ कोठों पे लोग उम्र,
होटल में मुझसे रात गुज़ारी नहीं जाती।

नाहक़ किसी ग़रीब की क़िस्मत बिगाड़ कर,
क़िस्मत मेरी ये मुझसे सँवारी नहीं जाती।

-शिवशंकर यादव

नाम : शिवशंकर यादव
कुसौडा, सुरियाँवा, जिला-भदोही, उत्तर प्रदेश
सम्पर्क : yshiv567@gmail.com



6 comments:

  1. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (08.01.2016) को " क्या हो जीने का लक्ष्य" (चर्चा -2215) पर लिंक की गयी है कृपया पधारे। वहाँ आपका स्वागत है, सादर।

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  2. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (08.01.2016) को " क्या हो जीने का लक्ष्य" (चर्चा -2215) पर लिंक की गयी है कृपया पधारे। वहाँ आपका स्वागत है, सादर।

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  3. Behad saralta se uljhee hui samasya par SHABD_VAAR kiya aapne, aapse pyar ho gaya.

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  4. Behad saralta se uljhee hui samasya par SHABD_VAAR kiya aapne, aapse pyar ho gaya.

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  5. मजबूरियाँ ले जाती हैँ बाज़ार में उसको,
    इज़्ज़त गँवाने ख़ुद ही बेचारी नहीं जाती।

    बहुत ही अच्छी पंक्तिया लिखी है आपने। कृपया आप मेरी वेबसाइट
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