लोग जो महवे-यार मिलते हैं।
आजकल बेक़रार मिलते हैं।
और तेवर मेरे सनम के तो,
बाखुदा धार दार मिलते हैं।
दुश्मनों की नहीं कमी कोई,
एक ढूँढो हज़ार मिलते है।
खुशनसीबी मेरी है दोस्त मुझे,
क़ाबिले-ऐतबार मिलते हैं।
बेवफाई का है अजब आलम ,
अब कहाँ जाँ-निसार मिलते हैं।
एक सिहरन है लाज़िमी उठना,
जब "कुँवर" दिल के तार मिलते है।
-कुँवर कुसुमेश
बहुत ही सुंदर रचना की प्रस्तुति।
ReplyDeleteदुश्मनों की नहीं कमी कोई,
ReplyDeleteएक ढूँढो हज़ार मिलते है।
वाह क्या बात है बहुत सुन्दर लिखा है। आप मेरी वेबसाइट जरूर देखिये http://www.couponzpoint.com इसमें आपको ७०% तक के Coupons मिलेंगे।