Wednesday, December 19, 2012

वो जितना रोई होगी बस में दिल्ली की लड़की मेरी आंखों के आंसू भी सुखाए उसी पगली ने.....गिरीश मुकुल

हां सदमा मग़र हादसा
देखा नहीं कोई !
और न तो साथ मेरे
जुड़ती है कहानी हादसे जैसी……!!
मग़र नि:शब्द क्यों हूं..?
सोचता हूं
अपने चेहरे पे
सहजता लांऊ तो कैसे ?
मैं जो महसूस करता हूं
कहो बतलाऊं वो कैसे..?
वो जितना रोई होगी बस में दिल्ली की लड़की
मेरी आंखों के आंसू भी सुखाए उसी पगली ने
न मैं जानता उसे न पहचानता हूं मैं ?
क्या पूछा -”कि रोया क्यूं मैं..?”
निरे जाहिल हो किसी पीर तुम जानोगे कैसे
ध्यान से सुनना उसी चीख
सबों तक आ रही अब भी
तुम्हारे तक नहीं आई
तो क्या तुम भी सियासी हो..?
सियासी भी कई भीगे थे सर-ओ-पा तब
देखा तो होगा ?
चलो छोड़ो न पूछो मुझसे
वो कौन है क्या है तुम्हारी अब वो कैसी है ?
मुझे मालूम क्या मैं तो
जी भर के
दिन भर रोया हूं
मेरे माथे पे
बेचैनियां
नाचतीं दिन भर !
मेरा तो झुका है
क्या तुम्हारा
झुकता नहीं है सर..?

सुनो तुम भी
दिल्ली से आ रहीं चीखैं.. ये चीखैं
हर तरफ़ से एक सी आतीं.. जब तब
तुम सुन नहीं पाते सुनते हो तो गोया
समझ में आतीं नहीं तुमको
समझ आई तो फ़िर किसकी है
ये तुम सोचते होगे
चलो अच्छा है जानी पहचानी नहीं निकली !!
हरेक बेटी की आवाज़ों फ़र्क करते हो
अगर ये करते हो ख़ुदा जाने क्या महसूस करते हो..?
हमें सुनना है हरेक आवाज़ को
अपनी समझ के अब
अभी नहीं तो बताओ
प्रतीक्षा करोगे कब तक
किसी पहचानी हुई आवाज़ का
रस्ता न तकना तुम
वरना देर हो जाएगी
ये बात समझना तुम !!

--गिरीश मुकुल

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