आओ, आज जिंदगी जी लें!
किरणों की तारें छेड़मीड़, तोड़ों, तानों में
लरज-लरज
कुछ गीत सुनहले गाता है सूरज
सुध-बुध खो लें।
मीठी ख़ामोशी में घुल-मिल
रतजगी चांदनी
बरसी है
झम-झम, झम-झम
तन-मन भर लें!
रंग-बिरंगी पोशाकों में
सजे-धजे
प्यारे पंछी
जिन प्यारी-प्यारी बातों में
डूबे
छुपकर सुन लें।
यह उछल-कूदती नदिया
नन्हीं बिटिया-सी
दौड़-दौड़ कुछ ढूंढ रही है
इधर-उधर
हम भी ढूंढें!
बच्चों की किलकारी-सी
बिखरी-बिखरी मासूम महक
इन फूलों की
आओ छू लें!
इस धरती में हैं बचे बहुत
कहने-सुनने-गुनने के गुन
फिर यूं ही रात-दिवस रीतें!
कुछ तो संभले!
क्या रखा उलझती बातों में
क्या लाभ घात-प्रतिघातों में
ये बातें सब बेमानी हैं
हम सीधे-सादे सरल बनें!
आओ, आज जिंदगी जी लें!
- डॉ. मृदुल जोशी ( एन आर आई )
sundar,parstuti, n jane kyon aaghat pratight ,khoon khnjar sarike hoti ja rahi hai,इस धरती में हैं बचे बहुत
ReplyDeleteकहने-सुनने-गुनने के गुन
फिर यूं ही रात-दिवस रीतें!
कुछ तो संभले!
क्या रखा उलझती बातों में
क्या लाभ घात-प्रतिघातों में
ये बातें सब बेमानी हैं
हम सीधे-सादे सरल बनें!
आओ, आज जिंदगी जी लें!
क्या रखा उलझती बातों में
ReplyDeleteक्या लाभ घात-प्रतिघातों में
ये बातें सब बेमानी हैं
हम सीधे-सादे सरल बनें!
आओ, आज जिंदगी जी लें!
बहुत सुन्दर भाव हैं इस रचना के