Tuesday, December 11, 2012

आओ, आज जिंदगी जी लें!.......डॉ. मृदुल जोशी ( एन आर आई )

 
 
 
आओ, आज जिंदगी जी लें!
किरणों की तारें छेड़
मीड़, तोड़ों, तानों में
लरज-लरज
कुछ गीत सुनहले गाता है सूरज
सुध-बुध खो लें।

मीठी ख़ामोशी में घुल‍-मिल
रतजगी चांदनी
बरसी है
झम-झम, झम-झम
तन-मन भर लें!

रंग-बिरंगी पोशाकों में
सजे-धजे
प्यारे पंछी
जिन प्यारी-प्यारी बातों में
डूबे
छुपकर सुन लें।

यह उछल-कूदती नदिया

नन्हीं बिटिया-सी
दौड़-दौड़ कुछ ढूंढ रही है
इधर-उधर
हम भी ढूंढें!

बच्चों की किलकारी-सी
बिखरी-बिखरी मासूम महक
इन फूलों की
आओ छू लें!

इस धरती में हैं बचे बहुत
कहने-सुनने-गुनने के गुन
फिर यूं ही रात-दिवस रीतें!
कुछ तो संभले!

क्या रखा उलझती बातों में
क्या लाभ घात-प्रतिघातों में
ये बातें सब बेमानी हैं
हम सीधे-सादे सरल बनें!
आओ, आज जिंदगी जी लें! 
 
- डॉ. मृदुल जोशी  ( एन आर आई )

2 comments:

  1. sundar,parstuti, n jane kyon aaghat pratight ,khoon khnjar sarike hoti ja rahi hai,इस धरती में हैं बचे बहुत
    कहने-सुनने-गुनने के गुन
    फिर यूं ही रात-दिवस रीतें!
    कुछ तो संभले!

    क्या रखा उलझती बातों में
    क्या लाभ घात-प्रतिघातों में
    ये बातें सब बेमानी हैं
    हम सीधे-सादे सरल बनें!
    आओ, आज जिंदगी जी लें!

    ReplyDelete
  2. क्या रखा उलझती बातों में
    क्या लाभ घात-प्रतिघातों में
    ये बातें सब बेमानी हैं
    हम सीधे-सादे सरल बनें!
    आओ, आज जिंदगी जी लें!
    बहुत सुन्दर भाव हैं इस रचना के

    ReplyDelete