उनका साया जहां-जहां पर
तिनका तक ना उगा वहां पर
अपना नाम लिखे दाने को
ढूंढ़ा जाने कहां-कहां पर
दुनिया का मालिक है तो फिर
क्यूं ना आता अभी यहां पर
दिल में है तो दिल को पढ़ ले
हम ना लाते जुबां पर
गुल को भी तो खिलने की जिद
क्यूं सारे इल्जाम खिजां पर।
- रमेश जोशी
सुन्दर भावो को रचना में सजाया है आपने.....
ReplyDeleteमैंने कविता कभी नहीं लिखी
Deleteबस पढ़ती हूँ...और पसंदीदा रचनाएँ यहाँ संजो लेती हूँ
आभार....