Wednesday, December 19, 2012

जियो उस प्यार में जो मैंने तुम्हें दिया है.........अज्ञेय


जियो उस प्यार में
जो मैंने तुम्हें दिया है,
उस दु:ख में नहीं जिसे
बेझिझक मैंने पिया है।

उस गान में जियो
जो मैंने तुम्हें सुनाया है,
उस आह में नहीं‍ जिसे
मैंने तुमसे छिपाया है।

उस द्वार से गुजरो
जो मैंने तुम्हारे लिए खोला है,
उस अंधकार से नहीं
जिसकी गहराई को
बार-बार मैंने तुम्हारी रक्षा की भावना से टटोला है।

वह छादन तुम्हारा घर हो
जिसे मैं असीसों से बुनता हूं, बुनूंगा;
वे कांटे-गोखरू तो मेरे हैं
जिन्हें मैं राह से चुनता हूं, चुनूंगा।

वह पथ तुम्हारा हो
जिसे मैं तुम्हारे हित बनाता हूं, बनाता रहूंगा;

मैं जो रोड़ा हूं, उसे हथौड़े से तोड़-तोड़
मैं जो कारीगर हूं, करीने से
संवारता-सजाता हूं, सजाता रहूंगा।

सागर किनारे तक
तुम्हें पहुंचाने का
उदार उद्यम ही मेरा हो;

फिर वहां जो लहर हो, तारा हो,
सोन-परी हो, अरुण सवेरा हो,

वह सब, ओ मेरे वर्ग!
तुम्हारा हो, तुम्हारा हो, तुम्हारा हो।

--सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय'

4 comments:

  1. उस गान में जियो
    जो मैंने तुम्हें सुनाया है,
    उस आह में नहीं‍ जिसे
    मैंने तुमसे छिपाया है।
    ------------------
    लम्बे अन्तराल के बाद कुछ अनहद सा....

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    1. बहुत दिनों बाद....
      शुक्रिया

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  2. वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति

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