हौसले अरमान सभी होंगे पूरे एक दिन इक आस थी |
समेट लुंगी बाहों में खुशियाँ सारी यही इक आस थी ||
तोड़ कर झिझोड़ दिया क्यूँ.......इतनी वहशत से |
देखे दुनियाँ तमाशबीन सी ना मन को ये आस थी ||
टूट गई हूँ ...विकल विवश सी मन में इतनी दहशत है |
शर्म करो उफ्फ !!! प्रश्नों से..जिनकी ना कोई आस थी ||
घूम रहे स्वच्छंद अपराधी देखो !!! भेड़िये की खाल में |
बन गई अपराधिनी...मैं ही कैसे..इसकी ना आस थी ||
मानवता से करूँ घृणा या देखूं हर मन को संशय भर |
रक्षक समझी थी ना विशवासघात की मन को आस थी ||
मिलती नहीं सजा क्यूँ....समझ ना पाय 'अलका' यह |
इन घावों की सजा दे कोई...जिसकी दिल को आस थी ||
--अलका गुप्ता
समेट लुंगी बाहों में खुशियाँ सारी यही इक आस थी ||
तोड़ कर झिझोड़ दिया क्यूँ.......इतनी वहशत से |
देखे दुनियाँ तमाशबीन सी ना मन को ये आस थी ||
टूट गई हूँ ...विकल विवश सी मन में इतनी दहशत है |
शर्म करो उफ्फ !!! प्रश्नों से..जिनकी ना कोई आस थी ||
घूम रहे स्वच्छंद अपराधी देखो !!! भेड़िये की खाल में |
बन गई अपराधिनी...मैं ही कैसे..इसकी ना आस थी ||
मानवता से करूँ घृणा या देखूं हर मन को संशय भर |
रक्षक समझी थी ना विशवासघात की मन को आस थी ||
मिलती नहीं सजा क्यूँ....समझ ना पाय 'अलका' यह |
इन घावों की सजा दे कोई...जिसकी दिल को आस थी ||
--अलका गुप्ता
behatreen " sb bhediye ab dilli me hajir ho gye,bn jishm ke saudagar ma betio ko kha gye..." घूम रहे स्वच्छंद अपराधी देखो !!! भेड़िये की खाल में |
ReplyDeleteबन गई अपराधिनी...मैं ही कैसे..इसकी ना आस थी ||
मानवता से करूँ घृणा या देखूं हर मन को संशय भर |
ReplyDeleteरक्षक समझी थी ना विशवासघात की मन को आस थी |
behtareeen...!
सोचकर ही बदन मे सिहरन सी दोङने लगती है
ReplyDeleteऐसे पिशाचों को ज़मीन पे भेजा ही क्यूँ रब ने।
http://ehsaasmere.blogspot.in/
सुन्दर
Deleteकभी-कभी आ जाया करो
हार्दिक धन्यवाद !!!!
ReplyDeleteआपकी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया
Deleteस्वागतम