तुम्हारी नीली छुअन
याद आती है,
याद
जो बर्फीली हवा के
तेज झोंकों के साथ
तुम्हें मेरे पास लाती है,
तुम नहीं हो सकते मेरे
यह कड़वा आभास
बार-बार भुला जाती है,
जनवरी की शबाब पर चढ़ी ठंड
कितना कुछ लाती है
बस, एक तुम्हारे सिवा,
तुम जो बस दर्द ही दर्द हो
कभी ना बन सके दवा,
नहीं जान सके
तुम्हारे लिए
मैंने कितना कुछ सहा,
फिर भी कुछ नहीं कहा...
---स्मृति जोशी 'फाल्गुनी'
sundar pr siharan bhari prastuti,pahad par vaise hi thithran bhari thand aur upar si
ReplyDeleteजो बर्फीली हवा के
तेज झोंके
बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही भावनामई रचना .बहुत बधाई आपको
ReplyDeleteतुम्हारे लिए
ReplyDeleteमैंने कितना कुछ सहा,
फिर भी कुछ नहीं कहा...
बहुत ही बढिया ।
शुक्रिया दीदी
Deleteधन्यवाद दीदी
ReplyDeleteबस, एक तुम्हारे सिवा,
ReplyDeleteतुम जो बस दर्द ही दर्द हो
कभी ना बन सके दवा,
नहीं जान सके
तुम्हारे लिए
मैंने कितना कुछ सहा,
फिर भी कुछ नहीं कहा...
बहुत सुंदर .....
शुक्रिया दीदी
Deleteआपने मेरी पसंद को सराहा
तुम नहीं हो सकते मेरे
ReplyDeleteयह कड़वा आभास
बार-बार भुला जाती है,
kadvi sachchai ...sundar rachna..