Wednesday, December 19, 2012

क्या लिखूं, कैसे लिखूं.....................रामचरण शर्मा 'मधुकर'


किस-किसकी बात लिखूं
मैं सोच रहा हूं
क्या लिखूं, कैसे लिखूं
मानव की भूख लिखूं
या पीड़ा का संसार लिखूं
पावन दिवाली के संग
जलते आचार लिखूं
कुंठित कलम हाथ में लेकर
किस-किस का व्यवहार लिखूं
किस-किसका व्यापार लिखूं
सुबह अजान सांझ के घंटे
कहीं पर पिछड़े कहीं हैं अगड़े
इन सबकी तकरार लिखूं या
मन का हाहाकार लिखूं
कैसे-कैसे गोरखधंधे
और घोटाले
बीच भंवर में, फंसने वाले
कुशल खिलाड़ी, नाविक
आघातों पर आघात लिखूं
या बेशरमी की बात लिखूं
सोच-सोच मन घुन जाता है
रात-रात पलकें खुल जाती हैं
गीत प्रगति के लिख डालूं
या बिखरा संसार लिखूं
क्रय पीड़ा जन-जन की या
महलों का परिहास,
कृषकों का शोषण लिख डालूं
या श्रम गंगा की धार लिखूं
खोए हैं कुछ स्वप्न सजीले
कुछ तो शेष रहे
मन में गांठ, बंधे हैं सारे
अब सपनों की बात लिखूं
या सच का इतिहास लिखूं।
- रामचरण शर्मा 'मधुकर'

7 comments:

  1. खुबसूरत अभिवयक्ति...... .

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  2. वाह . बहुत सुन्दर

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  3. खूबसूरत पेशकश मन की कशमकश को लिखने की

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  4. मन में गांठ, बंधे हैं सारे
    अब सपनों की बात लिखूं
    या सच का इतिहास लिखूं।
    ..
    बहुत बढ़िया प्रस्तुति ..

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  5. यशोदाजी आपका आभार की आपने मेरी रचना को नई पुरानी हलचल में शामिल किया ।

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  6. बहुत बढ़िया प्रस्तुति ..

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  7. प्रशंसनीय रचना - बधाई

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