Wednesday, December 12, 2012

अहसास हैं कुछ.............अश्विनी कुमार पाण्डेय


अहसास हैं कुछ भूखे-प्यासे, तोड़ रहे दम......
दूध आस्तीन के साँपों को पिलाते चलिए......

कहते हैं सभी, लोग यहाँ अच्छे नहीं हैं......
अपना भी गिरेबान कभी झाँकते चलिए......

दुश्मन से दिल्लगी ये सदा ठीक नहीँ है......
बस दोस्तों की भीड मेँ, पहचानते चलिए......

ढूंढोगे एक, मिलेंगे फिर सैंकड़ों यहाँ......
कुछ रौशनी नजर की तेज बढाते चलिए......

मैंने सुना,बिवाइयों का ओस है इलाज......
हरी, नर्म घास मखमली को रौंदते चलिए.......

- अश्विनी कुमार पाण्डेय

14 comments:

  1. क्या बात है ! अभिनव अभिव्यक्ति, सशक्त सुबोध सृजन ...

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  2. एक नव, सशक्त सृजन ... ढूंढोगे एक, मिलेंगे फिर सैंकड़ों यहाँ......
    कुछ रौशनी नजर की तेज बढाते चलिए......

    मैंने सुना,बिवाइयों का ओस है इलाज......
    हरी, नर्म घास मखमली को रौंदते चलिए.......

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  3. बहुत शानदार . बढ़िया है .आपको बहुत बधाई

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  4. मैंने सुना,बिवाइयों का ओस है इलाज......
    हरी, नर्म घास मखमली को रौंदते चलिए....
    वाह ... बहुत ही बढिया।

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    1. अच्छा लगा
      आप आई
      कैसी हो दीदी

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  5. आपका यह पोस्ट अच्छा लगा। मेरे नए पोस्ट पर आपकी प्रतिक्रिया की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी। धन्यवाद।

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  6. बहुत खूबसूरत गजल का चयन

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  7. kya baat hai...har shabd har line gehre bhav liyee hue

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  8. ~ मैंने सुना,बिवाइयों का ओस है इलाज......
    हरी, नर्म घास मखमली को रौंदते चलिए.......~
    इस शेर का तो मैं कायल हो गया ...

    मेरी नई कविता आपके इंतज़ार में है: नम मौसम, भीगी जमीं ..

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  9. बहुत सुन्दर

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