Monday, December 10, 2012

क्षितिज के पार...............डॉ. माधवी सिंह

मन को तृप्त करती तो है
रोशनी दिवस की
रात्रि के पहर में
क्षितिज के पार दिखाई देता है

अगणित तारे, तारामंडल
और नक्षत्रों का समूह
मन को अनंत की
सीमा के पार ले जाता है

जीवन के स्वरूप में
कुछ ऐसा ही रहस्य समाया है
सुख का मद और दुख की वेदना
एक ही चक्र की माया है

हां, जब चाह होगी उस दृष्टि की
जो आत्मा अनंत को दिखा सके
तब मिलेगा आनंद वह जो
है छिपा गहरे अंतरंग में।

- डॉ. माधवी सिंह

7 comments:

  1. वाह ... बहुत ही बढिया।

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  2. bahut hi sundar aur gambhir bhavo se paripurn जीवन के स्वरूप में
    कुछ ऐसा ही रहस्य समाया है
    सुख का मद और दुख की वेदना
    एक ही चक्र की माया है

    हां, जब चाह होगी उस दृष्टि की
    जो आत्मा अनंत को दिखा सके
    तब मिलेगा आनंद वह जो
    है छिपा गहरे अंतरंग में।

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  3. मन की सीमा नहीं कोई, वह तो है अनंत |
    सुख-दुख भाग हैं चक्र के, जिसका आदि न अंत ||

    आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (12-12-12) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
    सूचनार्थ |

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    1. शुभ प्रभात प्रदीप भाई
      बहुत-बहुत धन्यवाद

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  4. जीवन के स्वरूप में
    कुछ ऐसा ही रहस्य समाया है
    सुख का मद और दुख की वेदना
    एक ही चक्र की माया है

    बहुत सुंदर प्रस्तुति .....

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  5. बहुत बढ़िया प्रस्तुति यशोदा जी साझा करने हेतु हार्दिक आभार

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