Sunday, September 1, 2013

वक्त का तूफाँ आँसू पोंछ डालेगा.......सुशील सरित


कश्तियां खेते रहो साहिल पुकारेगा
वक्त का तूफाँ आँसू पोंछ डालेगा
आज यदि मंझधार में हो कल यही दरिया
खुद-ब-खुद उठकर किनारे पर उछालेगा

ठोकरों ने कर दिया है पांव घायल
किन्तु रुकने के समझ लो हम नहीं कायल
लड़खड़ाते ही सही चलना ज़रूरी है,
रास्ता कदमों को खुद सम्हालेगा

सफ़र है लम्बाअंधेरा भी घना गहरा
भय भटकने का यहां हर मोड़ पर पहरा
किन्तु यह तय है उसी की बस विजय होगी
अन्त तक जो दौड़ में हिम्मत न हारेगा

-सुशील सरित

सौजन्यःदेशबन्धु, रायपुर

5 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - सोमवार -02/09/2013 को
    मैंने तो अपनी भाषा को प्यार किया है - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः11 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra




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  2. sundar...jindagi jeena sikhati hain aisi rachnayein....aap agar bhul jao apne gum mey tho rah dikhati hai aisi rachnayein

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  3. वाह। । सुन्दर प्रस्तुति।

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