पर मैं जी रहा हूं निडर जैसे कमल जैसे पंथ जैसे सूर्य क्योंकि कल भी हम मिलेंगे हम चलेंगे हम उगेंगे और वे सब साथ होंगे आज जिनको रात ने भटका दिया है! -धर्मवीर भारती
सुन्दर प्रस्तुति ....!! आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार (03-09-2013) को "उपासना में वासना" (चर्चा मंचःअंक-1358) पर भी होगी! सादर...! डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
is post ke liye dhanyavad
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति ....!!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार (03-09-2013) को "उपासना में वासना" (चर्चा मंचःअंक-1358) पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर प्रस्तुति ....!!
ReplyDeleteकुछ ही शब्दों में गहरा जीवन दर्शन ...
ReplyDelete