Thursday, October 1, 2020

कुछ ठोकरें उसको अभी खाने तो दो ..डॉ. नवीन त्रपाठी

 

2122 2122 2122 212

रफ़्ता  रफ़्ता  खुशबुएँ  घर  मे  बिखर जाने तो दो ।
कुछ  हवाओं को  मेरे आंगन तलक आने तो  दो ।।

रोक   लेंगे  मौत  का  ये  कारवां  हम   एक  दिन।
इस   वबा   के  वास्ते   कोई   दवा  पाने तो  दो ।।

सच बता देगा जो  मुज़रिम  है  मुहब्बत का यहाँ।
उसकी आँखों में अभी थोड़ा नशा  छाने  तो दो ।।

दर्दो  ग़म  के  दौर  से  गुज़री  है  उसकी  ज़िंदगी ।
चन्द लम्हे ही सही अब दिल को बहलाने तो  दो ।।

ये ज़माना खुद समझ  लेगा  सनम  की  ख्वाहिशें ।
स्याह  जुल्फें  अरिज़ो  पर उनको  लहराने  तो दो।।

टूट कर भी  वो  बदलता है  कहाँ  अपना  बयान ।
आइने को सच किसी महफ़िल में बतलाने तो दो ।।

सारी यादें  फिर  जवां  हो  जाएंगी  तुम  देखना ।
गीत  जो  मैंने  लिखा था  बज़्म  में  गाने तो दो ।।

ज़िंदगी  की  हर  हक़ीक़त  से वो  होगा  रुबरू ।
इश्क़ में कुछ ठोकरें उसको अभी खाने  तो  दो ।।

-डॉ. नवीन त्रपाठी

9 comments:

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    1. आ0 ग़ज़ल तक आने के लिए तहेदिल से शुक्रिया

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  2. बहुत ही सराहनीय व मुकम्मल गजल है | वाह |

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    1. आ0 ग़ज़ल तक आने के लिए तहेदिल से शुक्रिया

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  3. बढ़िया प्रस्तुति

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    1. आ0 ग़ज़ल तक आने के लिए तहेदिल से शुक्रिया

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  4. Replies
    1. आ0 ग़ज़ल तक आने के लिए तहेदिल से शुक्रिया

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  5. आ0 ग़ज़ल को प्रकाशित करने के लिए तहेदिल से शुक्रिया

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