बाद मुद्दत करार आ जाये ।
गर तू आये बहार आ जाये ।।
भीगना है बहुत जरूरी तब ।
जब समुंदर में ज्वार आ जाये ।।
ऐ क़मर है सभी की ये ख़्वाहिश ।
उनके हिस्से का प्यार आ जाये ।।
इश्क़ के मुन्तज़िर हैं दीवाने ।
बस तेरा इश्तिहार आ जाये ।।
बात दिल की तभी बयां करना ।
आखों में जब ख़ुमार आ जाये ।।
तेरी हरक़त से एक दिन न कहीं ।
दोस्ती में दरार आ जाये ।।
पार करना तभी मुनासिब है ।
जब नदी में उतार आ जाये ।।
मेरे क़ातिल तुम्हारे ख़ंजर में ।
इक नई तेज धार आ जाये ।।
लीजिये बस दवा सनम से ही ।
इश्क़ का जब बुखार आ जाये ।।
-नवीन मणि त्रिपाठी
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 02 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteउम्दा सृजन।
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