परिवार की धुरी का एक पहिया है पिता,
जो कभी रुकता नही है।
रहता हमेशा चलायमान,
जो कभी थकता नही है।
कंधे पर जिम्मेदारियां लाख होने पर भी,
माथे पर शिकन कभी रखता नही है।
दुःख कितने भी हो उसपर,
पर उनको कभी गिनता नही है।
संतान की खुशियों के खातिर,
आंखों को कभी नम करता नही है।
पिता वो स्तंभ है,
जो संकट की आँधियों में कभी गिरता नही है।
रह हिमालय सा अडिग,
सारे तूफानों से लड़ता वही है।
पिता वो धुरी है जो कभी रुकता नही है।
लेखिका - निधि अग्रवाल
बहुत सुंदर सटीक ।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 04 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत खूब ..
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 05.03.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3631 में दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति
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