Wednesday, March 4, 2020

पिता परिवार की धुरी...निधि अग्रवाल

परिवार की धुरी का एक पहिया है पिता,
जो कभी रुकता नही है।

रहता हमेशा चलायमान,
जो कभी थकता नही है।

कंधे पर जिम्मेदारियां लाख होने पर भी,
माथे पर शिकन कभी रखता नही है।

दुःख कितने भी हो उसपर,
पर उनको कभी गिनता नही है।

संतान की खुशियों के खातिर,
आंखों को कभी नम करता नही है।

पिता वो स्तंभ है,
जो संकट की आँधियों में कभी गिरता नही है।

रह हिमालय सा अडिग,
सारे तूफानों से लड़ता वही है।
पिता वो धुरी है जो कभी रुकता नही है।
लेखिका - निधि अग्रवाल

7 comments:

  1. बहुत सुंदर सटीक ।

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 04 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 05.03.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3631 में दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|

    धन्यवाद

    दिलबागसिंह विर्क

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  4. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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