Wednesday, March 18, 2020

फलसफा ज़िन्दगी का....संगीता स्वरुप

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ज़िंदगी की नाव ,मैंने 
छोड़ दी है इस 
संसार रूपी दरिया में ,
बह रही है हौले हौले ,
वक़्त के हाथों है 
उसकी पतवार ,
आगे और आगे 
बढ़ते हुये यह नाव 
छोड़ती जाती है 
पानी पर भी निशान ,
जैसे जैसे बहती है नाव 
पीछे के निशान भी 
हो जाते हैं धूमिल ,
यह देखते हुये भी 
हम खुद को नहीं बनाते 
इस दरिया की तरह , 
 लगे रहते हैं हम 
पुराने निशानों की खोज में 
और  करते रहते हैं शिकायत कि
दर्द के सिवा  हमें 
कुछ नहीं मिला , 
चलो आज नाव से ही सीखें 
ज़िंदगी का फलसफा 
आगे बढ़ने में ही है 
असल मज़ा 
निशान देखने के लिए 
गर नाव रुक जाएगी 
अपने पीछे फिर कोई 
निशान भी नहीं बनाएगी । 


1 comment:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 18 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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