Friday, March 13, 2020

सुखमनी ..रंजना डीन

आज की रचना एक
बंद ब्लॉग से
इक्कीस बरस की थी सुखमनी 
जब आई थी ब्याह के
तब पता न था उसे
की जीतू के स्वभाव का
शादी के कुछ दिन बाद ही से
डराता धमकाता रहा वो
और वो डरती रही
निभाती रही मान इसे अपनी किस्मत
शादी के दो साल बाद
जब वो हुई पेट से
लड़ायी बदस्तूर जारी रही
चलती रही मारपीट भी
जीतू चला जाता काम पर
सुबकती रहती घर पर वो
बच्चा हुआ पर दिमाग से कमज़ोर
जीतू कोसता रहता उसे 
और वो कोसती रहती खुद को
खुद को व्यस्त रखने के लिए
उसने शुरू कर दी सिलाई घर से
उसकी भोलापन और मेहनत काम आई
वो करने लगी अच्छी कमाई
जीतू ने जब ये देखा
तो अपनी अकल लगायी
बोला इतना कुछ अकेले कैसे सम्भालोगी
तुम हो सीधी ज़माना है खराब
मैं सम्भालूंगा पैसों का हिसाब किताब
सुखमनी मान गयी उसकी बात
अब घर पर होने लगी दावतें
पीने लगा जीतू शराब
कम हो गए सुखमनी के ग्राहक
और बिगड़ गया घर का हिसाब किताब
और जीतू ने कर दिया अब नौकरी करने से इंकार 
सुखमनी में तब भी न मानी हार
करने लगी नौकरी दर्ज़ी की दुकान पर
वो सुबह जल्दी उठ जाती
घर का सारा काम निबटाती, खाना बनाती
और दिनभर खटती दुकान पर 
शाम को घर पर कदम रखते ही
शुरू हो जाती फरमाइशें 
सबसे पहले जीतू मांगता पैसे शराब के
और बता कर जाता की खाने में क्या बनाना है
शराब में धुत्त होकर आता
उसे चार गालियाँ सुनाता
यूँ ही चल रही है सुखमनी की ज़िंदगी
हमें सिर्फ सुनना चाहिए चटखारे लेकर
या कुछ करना भी चाहिए???
- रंजना डीन


2 comments:

  1. सार्थक प्रस्तुति

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  2. शुक्रिया "मेरी धरोहर" का, मेरी कविता शेयर करने के लिए। ब्लॉग बंद नही हुआ है बस अपडेट नही हुआ है, कविताएं अब फेसबुक पर चस्पा होने लगी हैं, जल्दी ही वापस आऊंगी ढेर सारी नई कविताओं के साथ

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