Wednesday, March 25, 2020

तन्हा रहने को बूढ़े मजबूर हुव...दिगंबर नासवा

धीरे धीरे अपने सारे दूर हुवे
तन्हा रहने को बूढ़े मजबूर हुवे


बचपन बच्चों के बच्चों में देखूँगा

कहते थे जो उनके सपने चूर हुवे


नाते रिश्तेदार सभी उग आए हैं

लोगों का कहना है हम मशहूर हुवे


घुटनों से लाचार हुवे उस दिन जो हम

किस्से फैल गये की हम मगरूर हुवे


गाड़ी है पर कंधे चार नहीं मिलते

जाने कैसे दुनिया के दस्तूर हुवे


पहले उनकी यादें में जी लेते थे

यादों के किस्से ही अब नासूर हुवे !


लेखक - दिगंबर नासवा 

4 comments:

  1. बहुत बढ़िया

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  2. बहुत ही सुंदर रचना

    भारतीय नववर्ष की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं

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  3. धीरे धीरे अपने सारे दूर हुवे
    तन्हा रहने को बूढ़े मजबूर हुवे
    बचपन बच्चों के बच्चों में देखूँगा
    कहते थे जो उनके सपने चूर हुवे बहुत खूब दिगम्बर जी | आधुनिकबोध की मार्मिक अभिव्यक्ति कराती रचना | सभी शेर सधे हुए है | आपको नव संवत्सर और दुर्गा नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाएं | सादर -

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  4. धीरे धीरे अपने सारे दूर हुवे
    तन्हा रहने को बूढ़े मजबूर हुवे
    बचपन बच्चों के बच्चों में देखूँगा
    कहते थे जो उनके सपने चूर हुवे बहुत खूब दिगम्बर जी | आधुनिकबोध की मार्मिक अभिव्यक्ति कराती रचना | सभी शेर सधे हुए है | आपको नव संवत्सर और दुर्गा नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाएं | सादर -

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