Tuesday, March 24, 2020

वक्त चुराना होगा.....अनीता जी

वक्त चुराना होगा !

काल की तरनि बहती जाती
तकता तट पर कोई प्यासा,
सावन झरता झर-झर नभ से
मरुथल फिर भी रहे उदासा !

झुक कर अंजुलि भर अमृत का भोग लगाना होगा
वक्त चुराना होगा !

समय गुजर ना जाए यूँ ही
अंकुर अभी नहीं फूटा है,
सिंचित कर लें मन माटी को
अंतर्मन में बीज पड़ा है !

कितने रैन-बसेरे छूटे यहाँ से जाना होगा
वक्त चुराना होगा !

कोई हाथ बढ़ाता प्रतिपल
जाने कहाँ भटकता है मन,
मदहोशी में डुबा रहा है
मृग मरीचिका का आकर्षण !

उस अनन्त में उड़ना है तो सांत भुलाना होगा
वक्त चुराना होगा !

जग की नैया सदा डोलती
हिचकोले भी कभी लुभाते,
जिन रस्तों से तोबा की थी
लौट-लौट कर उन पर आते !

नई राह चुनकर फिर उस पर कदम बढ़ाना होगा
वक्त चुराना होगा !

2 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 24 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. वक़्त चुराना होगा वाह

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