Thursday, June 8, 2017

चांद बेवफा नहीं होता.....स्मृति आदित्य









चांद नहीं कहता 
तब भी मैं याद करती तुम्हें 
चांद नहीं सोता 
तब भी मैं जागती तुम्हारे लिए 
चांद नहीं बरसाता अमृत 
तब भी मुझे तो पीना था विष 
चांद नहीं रोकता मुझे 
सपनों की आकाशगंगा में विचरने से 
फिर भी मैं फिरती पागलों की तरह 
तुम्हारे ख्वाबों की रूपहली राह पर।   

चांद ने कभी नहीं कहा 
मुझे कुछ करने से 
मगर फिर भी 
रहा हमेशा साथ 
मेरे पास
बनकर विश्वास। 
यह जानते हुए भी कि 
मैं उसके सहारे   
और उसके साथ भी
उसके पास भी 
और उसमें खोकर भी 
याद करती हूं तुम्हें। 
मैं और चांद दोनों जानते हैं कि 
चांद बेवफा नहीं होता। 
-स्मृति आदित्य

7 comments:

  1. समर्पण का विस्तार करके सुंदर रचना। बधाई।

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  2. बहुत सुन्दर....

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  3. मैं और चांद दोनों जानते हैं कि
    चांद बेवफा नहीं होता।

    सुन्दर पंक्तियाँ ! आभार। "एकलव्य"

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  4. सस्नेह आभार सभी का ....

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