Friday, June 9, 2017

तन -मन भिगो रही आज ... अलका गुप्ता

यादों की हरश्रृंगारी महक ।
अल्हड उन बतियों की चहक ।

ढलकी - ढलकी चितवन ये 
रूखे अधरों का कंपन ये ।

बिखर गई अलकों में ...
बीते दिनों की राख सी ...

सिमट गई लाली जो ...
झुर्रियों में अनायास ही ...

कसक बहुत रही है आज ।
जो तोड़ ना सके थे कायर हाथ ।

उन बीते दिनों के अनचाहे ...
बंधनों की झूठी लाज ।।

-अलका गुप्ता 

8 comments:

  1. हार्दिक आभार आप सभी का आदरणीय !!!

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  2. अलका गुप्ता जी की सुन्दर रचना पढ़वाने हेतु धन्यवाद

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  3. नारी स्वभाव का चिर परिचित अंदाज़ कभी विद्रोह की चिंगारी सुलगाता है तो कभी अतीत पर मनन करता है। यह मनन ज़रूरी है भविष्य में बंधनों की जकड़न से नारी शक्ति को उबारने के लिए। रचना का सन्देश हृदयस्पर्शी भावों के साथ उभरा है।

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  4. नमस्ते, आपकी यह रचना गुरुवार 15 -06 -2017 को "पाँच लिंकों का आनंद " http://halchalwith5links.blogspot.in में लिंक की गयी है। चर्चा के लिए आप भी आइयेगा ,आप सादर आमंत्रित हैं।

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  5. बहुत सुंदर रचना अलका जी।

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  6. बहुत सुन्दर।

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  7. बहुत सुन्दर रचना है

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  8. बहुत ही लघु शब्द, किन्तु हजारों भावनायें समेटे सुन्दर रचना आदरणीय ,आभार। "एकलव्य"

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