मेरी आत्मा की बंजर भूमि पर, कठोरता का हल चला कर, तुमने ये कैसा बीज बो दिया? क्या उगाना चाहते हो मुझमें तुम, ये कौन अँगड़ाई सी लेता है, मेरी गहराइयों में, कौन खेल सा करता है, मेरी परछाइयों से, क्या अंकुरित हो रहा है इन अंधेरों से...? क्या उग रहा है सूर्य कोई पूर्व से??? -सुरेन्द्र कुमार 'अभिन्न'
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द" में शुक्रवार 30 जून 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता है।
ReplyDeleteआशाओं का अंकुरण होते रहना ही जिजीबिषा का खाद -पानी है। हृदयस्पर्शी रचना।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना आदरणीय ।
ReplyDeleteसुंदर रचना
ReplyDeleteबेहतरीन
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