Wednesday, June 7, 2017

लौट के वो घर आती है....अलका प्रमोद







दौड़ में अंधी दौड़ पड़े हो, 
दूर देश में जा बसने,
पर कितने दिन रह पाओगे, 
उखड़ के जड़ से तुम अपने,

कब तक ऊंचे उड़ोगे आख़िर, 
कभी तो तुम थक जाओगे ,
तब ढूँढोगे एक छाँव पर, 
कहीं न ढूंढे पाओगे,

देखा है चिड़िया को उड़ते, 
लौट के वो घर आती है,
जब तक बंधी पतंग डोर से, 
तभी तलक उड़ पाती है,

है अभी समय मुड़ कर देखो, 
घर राह तुम्हारी तकता है,
हवा अभी भी है अपनी, 
बंद किया तुम्हीं ने रस्ता है,

खोलो खिड़की पिछवाड़े की हवा 
उधर से भी आने दो,
थाम के रखो नेह डोर, 
पहचान न पथ की खो जाने दो। 
-अलका प्रमोद

5 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना की है आपने
    हार्दिक बधाई

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (08-06-2017) को
    "सच के साथ परेशानी है" (चर्चा अंक-2642)
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  3. बहुत ही सुन्दर रचना...

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