Thursday, June 1, 2017

ज़िन्दगी एक पहेली....नीरजा मेहता 'कमलिनी'

ज़िन्दगी 
आदि से अंत तक
शाश्वत किन्तु क्षणिक
विस्तृत किन्तु संक्षिप्त
विचित्र किन्तु सत्य
अलबेली किन्तु नित्य
चिर परिचित किन्तु अकाल्पनिक
रहस्यमयी किन्तु दिलचस्प
विस्मयकारी किन्तु प्रभावकारी
अभिशापित किन्तु अलौकिक वरदान सी
उलझी डोर सी किन्तु
सपनों को साकार करती सी
प्रवाहमयी अद्भुत अभिव्यक्ति सी
भावानुकूल सुसंस्कृत आदर्शमयी
कविता की समीक्षा सी,
चक्रव्यूह समान
मानो हो
एक अनबूझी
अनसुलझी पहेली।










-नीरजा मेहता 'कमलिनी'


2 comments:

  1. बहुत सुंदर...
    वाह!!!!

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  2. हार्दिक धन्यवाद सुधा जी और सुशील जी

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