Sunday, September 29, 2013

ये गली सूनी पड़ी है घर चलो.................फ़ानी जोधपुरी


रात की बस्ती बसी है घर चलो
तीरगी ही तीरगी है घर चलो

क्या भरोसा कोई पत्थर आ लगे
जिस्म पे शीशागरी है घर चलो

हू-ब-हू बेवा की उजड़ी मांग सी
ये गली सूनी पड़ी है घर चलो

तू ने जो बस्ती में भेजी थी सदा
लाश उसकी ये पड़ी है घर चलो

क्या करोगे सामना हालत का
जान तो अटकी हुई है घर चलो

कल की छोड़ो कल यहाँ पे अम्न था
अब फ़िज़ा बिगड़ी हुई है घर चलो

तुम ख़ुदा तो हो नहीं इन्सान हो
फ़िक्र क्यूँ सबकी लगी है घर चलो

माँ अभी शायद हो "फ़ानी" जागती
घर की बत्ती जल रही है घर चलो 

-फ़ानी जोधपुरी 

सौजन्यः सतपाल ख्याल
http://aajkeeghazal.blogspot.in/2013/09/blog-post.html

4 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति..


    हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल पर आज की चर्चा : पीछे कुछ भी नहीं -- हिन्दी ब्लागर्स चौपाल चर्चा : अंक 012

    ललित वाणी पर : इक नई दुनिया बनानी है अभी

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  2. बढ़िया प्रस्तुति-
    आभार आदरणीया-

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  3. बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती,धन्यबाद।

    ज़मीन जब से है तबसे चलन ज़माने का
    है इश्क नाम फ़क़त दिल पे चोट खाने का

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