Tuesday, September 10, 2013

बस नाम का ही भाग्य विधाता है आईना.................... डॉ. कुंवर बेचैन



अपनी सियाह पीठ छुपाता है आईना
सबको हमारे दाग दिखाता है आईना

इसका न कोई दीन, न ईमान ना धरम
इस हाथ से उस हाथ में जाता है आईना

खाई ज़रा-सी चोट तो टुकड़ों में बँट गया
हमको भी अपनी शक्ल में लाता है आईना

हम टूट भी गए तो ये बोला न एक बार
जब ख़ुद गिरा तो शोर मचाता है आईना

शिकवा नहीं कि क्यों ये कहीं डगमगा गया
शिकवा तो ये है अक्स हिलाता है आईना

हर पल नहा रहा है हमारे ही ख़ून से
पानी से अब कहाँ ये नहाता है आईना

सजने के वक़्त भी ये हमें दे गया खरोंच
बस नाम का ही भाग्य विधाता है आईना 

-डॉ. कुंवर बेचैन

9 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - बुधवार - 11/09/2013 को
    आजादी पर आत्मचिन्तन - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः16 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra





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  2. बहुत खूब....सत्य से साक्षात्कार कराती ग़ज़ल ....
    साभार.....

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  3. आपकी यह रचना कल बुधवार (11-09-2013) को ब्लॉग प्रसारण : 113 पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
    सादर

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  4. वाह बेहतरीन ग़ज़ल .

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  5. बहुत सुन्दर ग़ज़ल . प्रस्तुति..

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  6. --- उल-जुलूल भावों की ग़ज़ल है...

    किसने कहा कि भाग्य-विधाता है आईना |
    चांदी की पीठ हो तभी बनता है आईना |
    है आपकी औकात क्या, वह बोल जाता है -
    क्या इसलिए न आपको भाता है आईना |

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  7. ख़ूबसूरत रचना से रूबरू कराने के लिए आभार

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  8. आदरणीय कुँवर बेचैन जी अति सुंदर रचना बहुत बधाई आपको ।

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