Monday, February 4, 2013

रात भर जागे हैं........... डा० श्रीमती तारा सिंह


रात भर जागे हैं , नींद हमको आती नहीं
काफ़िर के आँखों की शरारत जाती नहीं

क्या बात करूँ उस बेहया की ,जब आती 
है याद , तो मेरी नज़रों से शर्माती नहीं

आतिशे - आग*  में जल- जलकर दिल खाक
हो रहा,वो है कि उसे बू-ए-सोजे-निहाँ# आती नहीं

डरूँ कैसे न उस सितमगर के कूचे में जाने से
मुहब्बत है ,कि भरोसा दिलाती नहीं

शाखे-गुल@ की तरह रह-रह के लचक जाती है् वो
क्यों उसे मेरे दिल पे लगी चोट नजर आती नहीं


--डा० श्रीमती तारा सिंह



*इश्क की आग #जलने की गंध @डाली पर के फ़ूल


9 comments:

  1. behtareen ahshas, क्या बात करूँ उस बेहया की ,जब आती
    है याद , तो मेरी नज़रों से शर्माती नहीं

    आतिशे - आग* में जल- जलकर दिल खाक
    हो रहा,वो है कि उसे बू-ए-सोजे-निहाँ# आती नहीं

    डरूँ कैसे न उस सितमगर के कूचे में जाने से
    मुहब्बत है ,कि भरोसा दिलाती नहीं

    शाखे-गुल@ की तरह रह-रह के लचक जाती है् वो
    क्यों उसे मेरे दिल पे लगी चोट नजर आती नहीं

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  2. क्या बात करूँ उस बेहया की ,जब आती
    है याद , तो मेरी नज़रों से शर्माती नहीं -bahut khub.
    yashoda ji bahut din se aap blog par aayi nahi , tabiyat to thik hai ?
    New post बिल पास हो गया
    New postअनुभूति : चाल,चलन,चरित्र


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  3. wahh....Bahut umda.... Badhai
    http://ehsaasmere.blogspot.in/2013/01/blog-post_31.html

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  4. प्रदीप भाई
    धन्यवाद

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  5. बहुत सुंदर,धन्यवाद.

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  6. बहुत खूबसूरत ग़ज़ल ! हर शेर शानदार और बंदिश लाजवाब !

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  7. बहुत सुंदर ग़ज़ल ................

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  8. आपका लेख/आपकी कविता निर्झर टाइम्स पर लिंक की गयी है। कृपया इसे देखें http://nirjhar-times.blogspot.com और अपने सुझाव दें।

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