रात भर जागे हैं , नींद हमको आती नहीं
काफ़िर के आँखों की शरारत जाती नहीं
क्या बात करूँ उस बेहया की ,जब आती
है याद , तो मेरी नज़रों से शर्माती नहीं
आतिशे - आग* में जल- जलकर दिल खाक
हो रहा,वो है कि उसे बू-ए-सोजे-निहाँ# आती नहीं
डरूँ कैसे न उस सितमगर के कूचे में जाने से
मुहब्बत है ,कि भरोसा दिलाती नहीं
शाखे-गुल@ की तरह रह-रह के लचक जाती है् वो
क्यों उसे मेरे दिल पे लगी चोट नजर आती नहीं
--डा० श्रीमती तारा सिंह
*इश्क की आग #जलने की गंध @डाली पर के फ़ूल
behtareen ahshas, क्या बात करूँ उस बेहया की ,जब आती
ReplyDeleteहै याद , तो मेरी नज़रों से शर्माती नहीं
आतिशे - आग* में जल- जलकर दिल खाक
हो रहा,वो है कि उसे बू-ए-सोजे-निहाँ# आती नहीं
डरूँ कैसे न उस सितमगर के कूचे में जाने से
मुहब्बत है ,कि भरोसा दिलाती नहीं
शाखे-गुल@ की तरह रह-रह के लचक जाती है् वो
क्यों उसे मेरे दिल पे लगी चोट नजर आती नहीं
क्या बात करूँ उस बेहया की ,जब आती
ReplyDeleteहै याद , तो मेरी नज़रों से शर्माती नहीं -bahut khub.
yashoda ji bahut din se aap blog par aayi nahi , tabiyat to thik hai ?
New post बिल पास हो गया
New postअनुभूति : चाल,चलन,चरित्र
wahh....Bahut umda.... Badhai
ReplyDeletehttp://ehsaasmere.blogspot.in/2013/01/blog-post_31.html
शुक्रिया भाई
Deleteप्रदीप भाई
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत सुंदर,धन्यवाद.
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत ग़ज़ल ! हर शेर शानदार और बंदिश लाजवाब !
ReplyDeleteबहुत सुंदर ग़ज़ल ................
ReplyDeleteआपका लेख/आपकी कविता निर्झर टाइम्स पर लिंक की गयी है। कृपया इसे देखें http://nirjhar-times.blogspot.com और अपने सुझाव दें।
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