लड़ो कि तुमको लड़ना है..........माधवी श्री
लड़ो कि तुमको लड़ना है
लड़ कर जीने का हक हासिल करना है।
ये दुनिया जो तुम्हें गर्भ से
इस दुनिया में आने के लिए
प्रतिबंधित करती है
... आने के बाद हर पल
तुमसे तुम्हारे लड़की होने का
हिसाब मांगती है।
हिसाब देते-देते तुम्हारी जुबान
भले ही थक जाए,
पर उनके प्रश्न नहीं रूकते।
आओ इन प्रश्नों को बदल दें,
इन प्रश्न करनेवालों को बदल दें.
आओ लड़े कि
तुम्हें जीने का हक
हासिल करना है अपने लिए
अपने सुंदर कल के लिए।
--माधवी श्री
लड़की किसी से कमजोर नहीं,कमजोर तो हम लोग करते हैं,बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteओह ....बहुत सुंदर आह्वान ॥!!
ReplyDeleteआभार दीदी
Deleteबहुत अच्छी रचना एक आक्रोश भरी रचना
ReplyDeleteमेरी नई रचना
एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ
बहुत खूबसूरत ,सार्थक रचना
ReplyDeleteसाभार
बहुत खूबसूरत,सार्थक रचना ....
साभार ....
क्या खूब कहा आपने वहा वहा क्या शब्द दिए है आपकी उम्दा प्रस्तुती
ReplyDeleteमेरी नई रचना
प्रेमविरह
एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ
sarthak rachna
ReplyDeleteगुज़ारिश : !!..'बचपन सुरक्षा' एवं 'नारी उत्थान' ..!!
बहुत खूब चुनोती देती रचना और ये चुनोती जायज
ReplyDeleteमेरी नई रचना
प्रेमविरह
एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ
आओ लड़े कि
ReplyDeleteतुम्हें जीने का हक
हासिल करना है अपने लिए
अपने सुंदर कल के लिए।
..बहुत सार्थक आह्वान....