कहते हैं सब- "पा सकता है कोई भी ।
चाहे तो इस टेव से मुक्ति।
असंभव नहीं कुछ भी"।
सोचता किन्तु मैं,
इस सोच से अलग
बचेगा ही क्या,
छूट गई यदि मुझसे
मेरी आदत,
क्या मतलब रह जाएगा तब
मेरे होने का।
फूल खिलते हैं आदतन।
जानते हैं,
तोड़ लिए जाएंगे खिलते ही
या बिखर जाएंगे
पंखुड़ी-पंखुड़ी खिलते ही
तब भी कहां छोड़ा खिलना।
छोड़ा नहीं नदी ने बहना
खारे होने के डर से।
सुना है अभी-अभी
आदत से मजबूर तो गिरे गड्ढे में।
मरे,
अपने जुनून में।
मैं हंसा फिर
अपनी आदत के मुताबिक।
--प्रमोद त्रिवेदी
चाहे तो इस टेव से मुक्ति।
असंभव नहीं कुछ भी"।
सोचता किन्तु मैं,
इस सोच से अलग
बचेगा ही क्या,
छूट गई यदि मुझसे
मेरी आदत,
क्या मतलब रह जाएगा तब
मेरे होने का।
फूल खिलते हैं आदतन।
जानते हैं,
तोड़ लिए जाएंगे खिलते ही
या बिखर जाएंगे
पंखुड़ी-पंखुड़ी खिलते ही
तब भी कहां छोड़ा खिलना।
छोड़ा नहीं नदी ने बहना
खारे होने के डर से।
सुना है अभी-अभी
आदत से मजबूर तो गिरे गड्ढे में।
मरे,
अपने जुनून में।
मैं हंसा फिर
अपनी आदत के मुताबिक।
--प्रमोद त्रिवेदी
sundar Rachna...
ReplyDeletehttp://ehsaasmere.blogspot.in/2013/02/blog-post_11.html
आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (13-02-13) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
ReplyDeleteसूचनार्थ |
आदत से मजबूर!
ReplyDeleteबहुत सुंदर ...
ReplyDeleteham bhi aadat se majbur aapki rachna mein khinche chale aaye
ReplyDeleteआदत अगर बुरी हो तो छूटना ही बेहतर |
ReplyDeleteसादर
इतना भी आसान नहीं है
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteछोड़ा नहीं नदी ने बहना
ReplyDeleteखारे होने के डर से....
बहुत सुंदर
ati sundar.....
ReplyDeleteवहा क्या बात है हर एक शब्द में एक नई कहानी कहती आपकी रचना
ReplyDeleteउत्कर्ष रचना
मेरी नई रचना
फरियाद
एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ
दिनेश पारीक