Tuesday, February 12, 2013

अपनी आदत के मुताबिक.....प्रमोद त्रिवेदी

कहते हैं सब- "पा सकता है कोई भी ।

चाहे तो इस टेव से मुक्ति।

असंभव नहीं कुछ भी"।

सोचता किन्तु मैं,

इस सोच से अलग

बचेगा ही क्या,

छूट गई यदि मुझसे

मेरी आदत,

क्या मतलब रह जाएगा तब

मेरे होने का।

फूल खिलते हैं आदतन।

जानते हैं,

तोड़ लिए जाएंगे खिलते ही

या बिखर जाएंगे

पंखुड़ी-पंखुड़ी खिलते ही

तब भी कहां छोड़ा खिलना।

छोड़ा नहीं नदी ने बहना

खारे होने के डर से।

सुना है अभी-अभी

आदत से मजबूर तो गिरे गड्‌ढे में।

मरे,

अपने जुनून में।

मैं हंसा फिर

अपनी आदत के मुताबिक।

--प्रमोद त्रिवेदी

11 comments:

  1. sundar Rachna...
    http://ehsaasmere.blogspot.in/2013/02/blog-post_11.html

    ReplyDelete
  2. आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (13-02-13) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
    सूचनार्थ |

    ReplyDelete
  3. ham bhi aadat se majbur aapki rachna mein khinche chale aaye

    ReplyDelete
  4. आदत अगर बुरी हो तो छूटना ही बेहतर |

    सादर

    ReplyDelete
  5. इतना भी आसान नहीं है

    ReplyDelete
  6. छोड़ा नहीं नदी ने बहना

    खारे होने के डर से....
    बहुत सुंदर

    ReplyDelete
  7. वहा क्या बात है हर एक शब्द में एक नई कहानी कहती आपकी रचना
    उत्कर्ष रचना
    मेरी नई रचना
    फरियाद
    एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ
    दिनेश पारीक

    ReplyDelete