Friday, July 13, 2018

कुछ फुटकर श़ेर.....जनाब "जमाल एहसानी"

 इस सफर में कोई दो बार नहीं लुट सकता 
 अब दोबारा तिरि चाहत नहीं की जा सकती
 *** 
याद रखना ही मोहब्बत में नहीं है सब कुछ
 भूल जाना भी बड़ी बात हुआ करती है
 *** 
तेरे बगैर जिसमें गुज़ारी थी सारी उम्र 
 तुझसे जब आए मिल के तो वो घर ही और था 
 *** 
 दिल से तेरी याद निकल कर जाए क्यों 
 घर से बाहर क्यों घर का सामान रहे 
 *** 
जो सिर्फ एक ठिकाने से तेरे वाकिफ़ हैं
 तिरी गली में वो नादान जाया करते हैं
 *** 
अजब है तू कि तुझे हिज़्र भी गराँ गुज़रा 
 और एक हम कि तिरा वस्ल भी गवारा किया
 *** 
इश्क करने वालों को सिर्फ ये सहूलत है
 कुछ न करने से भी दिल बहलता रहता है
 *** 
देखने वालों ने यकजान समझ रख्खा था 
 और हम साथ निभाते रहे मजबूरी में 
 *** 
जमाल खेल नहीं है कोई ग़ज़ल कहना 
 की एक बात बतानी है इक छुपानी है

-जनाब "जमाल एहसानी"

प्राप्ति स्त्रोत

5 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (14-07-2018) को "सहमे हुए कपोत" (चर्चा अंक-3032) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. वाह !!!बहुत खूबसूरत रचना।

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  3. बहुत बढ़िया

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