Tuesday, July 3, 2018

मेघ-मल्हार...... ऋषभ खोड़के "रुह"

घनन-घन-घन,मेघ गाये मल्हार, अली री !
घनन-घन-घन,मेघ गाये मल्हार

चमक-चम-चम बिजुरीया चमके,
छमक-छम-छम पानी की बौछार, अली री
घनन-घन-घन,मेघ गाये मल्हार

कल-कल-कल-कल,संगीत नदी का,
सर-सर-सर-सर , करे आम की डार, अली री
घनन-घन-घन,मेघ गाये मल्हार

हरीतिमा ओढे, बैठी धरती लजाई,
और सतरंगी श्रावन करे श्रुंगार , अली री
घनन-घन-घन,मेघ गाये मल्हार

पंख फैलाये वन नाचे मयूरा
पिहु-पिहु-पिहु-पिहु, पपीहे की पुकार , अली री
घनन-घन-घन,मेघ गाये मल्हार
-ऋषभ खोड़के "रुह"

6 comments:

  1. बेहतरीन अभिव्यक्ति

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  2. Can I pls use this for a children's paper that we create? With credit? Hum bachcon ke liye aisi hi acchi alliteration vaali HIndi Kavita dhoondhte rehte hain..

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (04-07-2018) को "कामी और कुसन्त" (चर्चा अंक-3021) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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  4. सुंदर अलंकारों से सुसज्जित सुंदर रचना ।

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  5. शब्द ज्यों मोती जडे
    भाव ज्यों रस बहे
    बहुत ही सुंदर रचना

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