Saturday, July 28, 2018

आशा की किश्ती...डॉ. कुशल चंद कटोच

आशा की किश्ती को
हम ले चले हैं
हिम्मत की पतवार से
वक़्त की विपरीत धारा में
नहीं पता हमें
पाएँगे मंज़िल
यह फिर
हो जाएँगे शिकार
लालच, बेईमानी, ख़ुदगर्ज़ी
के पत्थरों का
और डूब जाएँगे
अपनी ही आशा के 
दरिया के भँवर में।
-डॉ. कुशल चंद कटोच

6 comments:

  1. सार्थक रचना

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  2. ...और डूब जाएँगे
    अपनी ही आशा के
    दरिया के भँवर में।
    वाह

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  3. आस ही विश्वास है ...बेहतरीन लेखन

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (29-07-2018) को "चाँद पीले से लाल होना चाह रहा है" (चर्चा अंक-3047) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  5. लाजवाब रचना।

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