जब नींद 
नहीं आती रातों को 
अक्सर न जाने कितनी ही 
अनलिखी नज़्में 
मेरे साथ 
करवट बदला करती हैं 
कई बारी आँखों के 
दरवाज़े खटखटाती 
आँसू बन 
गालों को चूमती हैं 
कभी तकिये पर 
सीलन सी महकती हैं 
नर्म पड़ जाता है जब 
यादों से 
ख़ामोशी का बिछोना 
नज़्में 
तन्हाई को सहलाती है 
धकेलती है, लफ्ज़ों को 
ज़बां तक बिछने को 
सफ़हे तलाशती है 
वरक फैले होते है ख़्यालों के 
उन्हें चुनती, चूमती 
गले लगाती हैं 
मेरे ऐसे 
कितने ही पुलिंदे 
ये बाँध रख जाती हैं 
रंजो ग़म से घबराती नहीं 
मेरा साथ निभाए जाती हैं 
यूँही रात भर 
अक्सर जब कभी 
मुझे नींद नहीं आती 
न जाने 
कितनी अनलिखी 
मेरे साथ करवट बदला करती हैं ……..
-प्रियंका सिंह


अप्रतिम सुंदर।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (15-07-2018) को "आमन्त्रण स्वीकार करें" (चर्चा अंक-3033) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर रचना
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति .
ReplyDelete'रंजो ग़म से घबराती नहीं' . बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteBahut sundar!
ReplyDelete