Thursday, July 12, 2018

उड़ान...सोना झा

लो सहारा उस पवन के वेग का
निस्तेज़ और अदृश्य है जो धरा पर,
बना दी पगडंडियाँ हैं प्रकृति ने
स्मरण करो स्वयं के अस्तित्व का। 

बनाकर पंख उसको 
उड़ चलो गगन में,
वो है प्रतीक्षा में तुम्हारी।

उत्तेजना के लहर से,
विस्मरण करो हर प्रतिबंध का
बस तुम हो,
ये जगत है तुम्हारा
ये जगत है तुम्हारा।
-सोना झा
कवि परिचय

3 comments:

  1. वाह सकारात्मकता और स्व की पहचान!!
    बहुत सुंदर

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (13-07-2018) को "लोग हो रहे मस्त" (चर्चा अंक-3031) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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