Thursday, July 13, 2017

आज हक़ीक़त सा ये किस्सा...पावनी दीक्षित 'जानिब'


मैंने उसके लिए अपना सबकुछ नीलाम कर दिया 
उसकी नज़रो में मैने खुदको ही नाकाम कर दिया।

वो मुझे समझे गुनहगार तो अब मर्ज़ी है उसकी
हमको लिखना था नाम, दिल उसके नाम कर दिया ।

तुमको खबर है दिलसे हारे है बस हम तुम्हारे हैं 
फिर क्यों अपनी नज़रों में मुझे बदनाम कर दिया ।

बेहद होकर मजबूर तेरे रास्ते से दूर आ गए निकल कर 
ठोकर लगे या सम्हलूं तूने तो यार अपना काम कर दिया ।

आओ सुनाए एक कहानी एक दीवाना था एक दीवानी
आज हक़ीक़त सा ये किस्सा मैने सरेआम कर दिया ।

जानिब नहीँ कोई शिकवा है बस ये शिकायत है थोड़ी
सुनो अब तुमने आगाज को क्यों अन्जाम कर दिया ।
- पावनी दीक्षित 'जानिब'

4 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (13-07-2017) को "झूल रही हैं ममता-माया" (चर्चा अंक-2666) (चर्चा अंक-2664) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. ईमानदार संवाद दिल को छू लेता है। सुंदर रचना। बधाई।

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