Monday, July 10, 2017

याद...अर्चना वैद्य करंदीकर















मैंने सुनी थी विरह की बातें मगर
कोयल तो कूकती है; फूल भी खिलते हैं;
पंछी भी चहकते हैं.....
कोई नहीं जान पाता 
तुम्हारे न होने का अंतर
मेरे सिवा...
याद तुम्हारी आती है तो लगता है
जैसे मेरी किताब तुम्हारा चेहरा है
शब्द चेहरे की भाव भंगिमाएँ
और वाक्य तुम्हारी मुस्कान से
लगते हैं मुझे....
वैसे एक अंतर तो है
तुममे और किताब मे
तुम्हे पढना आसान है
मगर तुम्हारी याद के साथ
किताब पढना
बहुत बहुत मुश्किल.....!!!!!

-अर्चना वैद्य करंदीकर


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