हर चेहरे पे निखार आयी है !!
बादल भी बरसे जमकर !
धरा की प्यास बुझायी है !!
बैरी सजनवां परदेश बसे !
याद उनकी बार बार आयी है !!
पाती लिख लिख हैरान हुई !
बागों में भी बहार आयी है !!
चूड़ी खनके हाथों मे !
पायल ने टेर लगायी है !!
पांव महावर लगाके !
हाथों में मेंहदी रचायी है !!
बन-ठन बैठी अंगना !
विरहा ने आग लगायी है !!
सखियां बोले बोली !
मिलकर हंसी उड़ायी है !!
दे दे कोई साथी संदेशवा !
आंख मेरी भर आयी है !!
अबके आना फिर न जाना !
बैरी बलम तुमको दुहाई है !!
- प्रीती श्रीवास्तव
महफिल से....
सुखद एहसास कराती संजीदा सावन की कविता। बधाई प्रीती जी।
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लाग purushottamjeevankalash.blogspot.com पर भी पधारें। सस्नेह निमंत्रण।
सुन्दर।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 17 जुलाई 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in आप सादर आमंत्रित हैं ,धन्यवाद! "एकलव्य"
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (17-07-2017) को "खुली किताब" (चर्चा अंक-2669) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूब
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteआधुनिकता से परे माटी की महक का एहसास कराती मनभावन रचना।
ReplyDeleteदे दे कोई साथी संदेशवा !
ReplyDeleteआंख मेरी भर आयी है !!
अबके आना फिर न जाना !
बैरी बलम तुमको दुहाई है !!......विरह का अंतरतम नाद!
नारी मन की व्यथा का सार्थक गीत --------
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